Neeraj Agarwal

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लेखनी कहानी -21-Dec-2023

शीर्षक - मेरा सर्वोत्तम दोस्त

सच तो जीवन में हम सभी को मालूम रहता है और हम सभी जीवन में संसार के साथ-साथ नियमों का पालन भी करते हैं जब हम जीवन में मानव के रूप में सांसारिक बातों में ध्यान देते हैं तब हम सभी को एक दूसरे का सहयोग चाहिए। और फिर जब सहयोग चाहिए तो सहयोग में हम नर नारी युवा युवती जो कि समाज के साथ-साथ संसारिक प्राणी है इसीलिए हम सभी को कुछ रिश्ते नाते भी बनाने पड़ते हैं उन्हें रिश्तो में से हम सब उन रिश्तो का नाम भी देते हैं। आज की कहानी में हम सभी लोग सर्वोत्तम रिश्ते के बारे में देखेंगे या हम मेरा सर्वोत्तम दोस्त किसे कहेंगे समझेंगे ऐसे ही कहानी का किरदार एक युवा लड़की ललिता जो की जीवन में अच्छी होनहार और पढ़ने लिखने में समझदार थी। माता-पिता के देहांत की बात वह अपनी गांव की सारी जमीन जायदाद बेचकर दिल्ली के एक कॉलोनी में मकान लेकर रहने लगती है। मेरा सर्वोत्तम दोस्त कहानी के शीर्षक के साथ-साथ हम आगे बढ़ते हैं और ललिता जब दिल्ली आ जाती है और एक मकान लेकर अपना रहने का प्रयास शुरू करती है क्योंकि एक गांव की अलग लड़की दिल्ली जैसे भीड़भाड़ वाले व्यस्त शहर में अकेली कदम उठाती है रहने का और जीने का तब हम महसूस कर सकते हैं कि इसके जीवन में माता-पिता का साया उठ गया और वह अपने जीवन में अकेली हो तब उसकी सर्वोत्तम दोस्त कौन हो सकता है ललिता जिस कॉलोनी में मकान लेती उसके सामने एक लड़की कविता जो की दिल्ली शहर में पली बड़ी थी। और कविता के माता-पिता की एक प्लेन हादसे में मृत्यु हो चुकी थी और उसका भाई विकलांग था और जीने के लिए वह कुछ नौकरी भी करती थी और उसके साथ बाइक को देखभाल करती थी विकलांग भाई ना कुछ कर सकता था बस एक बिस्तर पर पड़ा अपने जीवन की जिंदगी जी रहा था और कविता उसके लिए दिन-रात मेहनत करती थी बस ललिता भी उसके रहन-सहन को देखकर उसे दोस्त बना लेती है आप ललिता और कविता एक से दो हो जाते हैं दोनों के विचार मिलने लगते हैं एक दिन ललिता अपने भोलेपन के साथ कविता से पूछती है।‍ कविता आप काम क्या करती हैं कविता इस जमाने में बस अपना जीवन जीने के लिए अपना शरीर और अपने एहसास को बेचती हूं। ललिता वह कैसे बेचती हैं। मुस्कुराते हुए कविता तुम बहुत भोली होतुम बताओ। ललिता मुझे भी अब रहते हुए दिल्ली में काफी दिन हो गए अब मैं भी कुछ काम करना चाहती हूं जिससे कुछ मेरे घर का गुजारा हो जाए मैं तो अकेली हूं आप बताइए मुझे क्या कोई नौकरी दिलवा सकती है कविता ललिता से पूछती है आप कितनी पढ़ी लिखी है। तब ललिता कहती है मैं तो ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं हूं। कविता रहती है यह समाज और यह संसार किसी को कुछ नहीं देता सहयोग हां हमारे जीवन में हमारे शरीर की हमारे एहसास की हमारी सोच की कीमत है। और कविता ललिता से कहती है तुम गांव से आई हो और तुम इस दिल्ली के शहर को नहीं जानती हो यहां चेहरे देखने की और खाने की कुछ और होते हैं और सबसे अच्छा दोस्त समय और तुम्हारा खुद का वजूद होता है तब कविता रहती है मेरा सर्वोत्तम दोस्त तो मेरा समय और मेरा शरीर है क्योंकि समय मुझे बताता है और शरीर मुझे पैसे देता है बस यही मेरा सर्वोत्तम दोस्त है तब ललित कविता की कहानी सुनती है ललिता अपनी आप बीती बताती है कि मुझे मेरे जीवन में इस जिंदगी को क्यों जीना पड़ा और फिर वह अपने बिस्तर पर पड़े विकलांग भाई को दिखाती है जिसे देखकर ललिता भी दुखी सी हो जाती है और वह कविता को सच सही मानती है और मन में बदल जाती है सच आज के आधुनिक युग में मेरा सर्वोत्तम दोस्त समय और मेरा जिस्म ही है। और ललिता और कविता दोनों अपने जीवन के पालन पोषण करने के लिए दिल्ली जैसे महंगे शहर में सर्वोत्तम दोस्त के साथ समझौता कर लेती है और अपनी जिंदगी में चुपचाप जीने लगती है। क्योंकि ललित को भी कविता की जिंदगी से समझ आ चुका था और ललिता रहती है मेरा सर्वोत्तम दोस्त समय और मेरा शरीर है सच के साथ हम सभी एक दूसरे को गलत या शब्दों के साथ गलत समझते हैं परंतु हम कभी भी उसके समय और उसकी मजबूरी को नहीं देख पाते हैं। सच मेरा शरीर मेरा समय और मेरा शरीर ही होता है। एक कड़वा सच मेरा सर्वोत्तम दोस्त सच में या तो हमारा समय होता है या हमारा शरीर होता हैं। आओ मेरा जीवन दोस्त में हम जीवन की मर्म को समझते हैं। सच मेरा सर्वोत्तम दोस्त ललिता ऐसे कहती हुई अपनी घर के दरवाजे का लॉक कर लेती हैं ।

नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र

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6 Comments

HARSHADA GOSAVI

06-Jan-2024 09:30 AM

👍⭐👌👌

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Rupesh Kumar

22-Dec-2023 04:15 PM

V nice

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Gunjan Kamal

22-Dec-2023 02:46 PM

👏👌

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